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    कारसेवक के रूप में विनोद कुमार माथुर का योगदान रहा अतुलनीय



    सदर,गोरखपुर 

    विनोद कुमार माथुर निवासी पावर हाउस कॉलोनी मोहद्दीपुर गोरखपुर ने अपना संस्मरण हमारे संवाददाता से बताया।उन्होंने कहा कि उनको भली-भांति आज भी याद है कि 27 नवंबर 1990 शुक्रवार छठ महापर्व का संध्याकालीन पर्व था मैं उसे समय कक्षा 9 का 14 वर्षीय विद्यार्थी था बाल्यावस्था में ही राम लला मंदिर बनाने की ऐसी अलख जागी की हम लोग जो की प्रतिदिन शाखा के स्वयंसेवक थे मैं उस समय अपनी भारत शाखा जो पावर हाउस कॉलोनी के पार्क में लगा करती थी उसका मुख्य शिक्षक था अपने कुछ छात्र जीवन के मित्रों एवं स्वयंसेवकों के साथ बगैर घर से बताएं चुपचाप साइकिल के माध्यम से अयोध्या के लिए प्रस्थान कर गए उस समय घर के सारे लोग छठ पूजन के लिए पार्क में गए हुए थे बाद में घर वालों को पता चला की मैं अयोध्या के लिए साइकिल से निकल चुका हूं मेरा पूरा मोहल्ला उस समय राम मय हो चुका था ।हम लोग पूर्व में नित्य प्रतिदिन दीवारों पर लिखना और पोस्टरों को चिपकाने रात्रि कालीन में यह हम लोग के नित्य क्रम में आ चुका था। घर से निकलने के बाद जब हम लोग गोरखपुर की सीमा नौसढ़ चौराहे के पास पहुंचे तभी हम लोगों ने देखा की पुलिस प्रशासन का गहन पहरेदारी एवं जांच अभियान चल रहा था ।हम सभी लोग गांव से होते हुए अंदर-अंदर कुछ ग्रामीण एवं आर एस एस  के बताए हुए मार्ग पर चल रहे थे ग्रामीण के द्वारा हम लोगों को समय-समय पर भोजन, जलपान ,ठहरने की व्यवस्था एवं मार्गदर्शन मिलते जा रहा था हम लोग जब एक गांव से दूसरे गांव जाते थे तो पुलिस की निगाह हम लोग तक ना पड़े इसलिए कभी-कभी हम लोगों को विभिन्न प्रकार के भेष बदलने पड़ते थे कभी चरवाहे के रूप में कभी ग्वाला के रूप में कभी सब्जी विक्रेता के रूप में तो कभी क्रेता के रूप में भी हम लोगों को आगे की तरफ बढ़ते जा रहे थे जगह-जगह ग्रामीणों के द्वारा पेड़ों पर निशान के माध्यम से मार्गदर्शन मिलता रहता था किसी किसी घर में ध्वज के माध्यम से या अन्य किसी निशान के माध्यम से सचेत किया जाता था और आगे मार्गदर्शन होते रहते थे दो दिन के अथक प्रयासों एवं प्रबल इच्छा के बाद हम लोग अयोध्या निकट कटरा तक पहुंच गए वहीं निकट के गांव के एक प्रधान जी ने अपने आवास में हम लोगों को रात्रि तक ठहरने की व्यवस्था की और भोजन के पश्चात नाव के माध्यम से हम लोगों को अयोध्या तक जाना था अभी हम लोग नाव में सवार होकर कुछ ही दूर गए थे कि कुछ फोर्स के लोगों ने हम लोगों को नाव सहित घेर लिया और हमारी नाव को कटरा किनारे तक ले आए वहां पर सभी को उतारने के बाद पूछा गया की जिसको घर जाना हो वह एक किनारे हो जाएं और जिनको जेल जाना हो वह दूसरे किनारे पर हो जाए हम लोगों का दृढ़ संकल्प था कि हर हाल में अयोध्या तक जाना है हम लोगों ने निर्णय लिया की घर जाने से बेहतर है जेल जाना तभी हम लोगों को अस्थाई जेल जो एक प्राइमरी विद्यालय था उसी में हम लोगों को बगैर भोजन के बंद कर दिया गया रात्रि के समय में विद्यालय की एक खिड़की को तोड़कर हम लोग वहां से बाहर निकल गए और अयोध्या की तरफ पुनः प्रस्थान कर गए अयोध्या हम लोगों की निगाह के सामने थी तभी पुनः हम लोगों की गिरफ्तारी हो गई और हम लोगों को बस्ती जेल में लाकर के बंद कर दिया गया जहां प्रथम दिन तरह-तरह की यातनाएं एवं प्रताड़नाऐं दी गई हम सभी कारसेवकों के विरोध के बाद दूसरे दिन से हम लोगों को भोजन एवं जलपान की व्यवस्था की गई हम सभी कार सेवक वहां पर सुबह और शाम शाखा लगाना रामधुन गाना इत्यादि के माध्यम से एक दूसरे का मनोबल बढ़ाया करते थे वह 30 अक्टूबर1990 का दिन था जो की लगातार सात दिनों तक चला रहा और अंत में 06 नवंबर 1990 को हम लोग को रिहा कर दिया गया। रिहाई के बाद किसी प्रकार के कोई साधन नहीं थे जिससे कि हम लोग वापस अपने घर आ सके कभी पैदल कभी किसी सवारी जहां जो भी साधन मिलता गया उसे माध्यम से हम लोग दिनांक 8 नवंबर को अपने घर वापस आए ।घर पर आने के बाद ऐसा महसूस होता था की कुछ तो अधूरा काम रह गया जो मैं नहीं कर पाया। आज वह अधूरा काम पूरा हो रहा है यह प्रभु श्री राम की बड़ी कृपा है कि हम लोगों के जीवित रहते आज मंदिर बन रहा है मैं तो शिलान्यास के दिन भी वहीं पर था और पुनः उद्घाटन के दिन भी वहीं पर रहूंगा ऐसी मेरी इच्छा एवं मनोकामना है।

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