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    काबा शरीफ का तवाफ, कुर्बानी व शैतान को कंकरियां मारने का तरीका बताया गया चौथे चरण का हज प्रशिक्षण


    चौथे चरण का हज प्रशिक्षण 


    गोरखपुर। जिले के हज यात्रियों को नार्मल स्थित दरगाह हजरत मुबारक खां शहीद में रविवार को दावते इस्लामी इंडिया की ओर से मिना, मुजदलफा, अरफात का नक्शा बनाकर चौथे चरण का हज प्रशिक्षण दिया गया। काबा शरीफ का तवाफ, कुर्बानी व शैतान को कंकरियां मारने का तरीका बताया गया। हज के फराएज, हज के पांच अहम दिन व हज का अमली तरीका भी बताया गया। प्रशिक्षण 3 मार्च को भी दिया जाएगा। प्रशिक्षण के दौरान तल्बिया यानी 'लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक' का अभ्यास जारी रहा। 

    हज प्रशिक्षक हाजी मो. आज़म अत्तारी ने बताया कि हज के पांच दिन अहम होते हैं। 8वीं जिलहिज्जा (इस्लामी माह) पहला दिन है। 8वीं तारीख की रात नमाज-ए इशा के बाद एहराम पहन कर मक्का शरीफ से मिना के मैदान (पवित्र स्थान) रवानगी होती है। यहां पांच वक्त की नमाज़ें यानि 8वीं जिलहिज्जा की जोहर से लेकर 9वीं जिलहिज्जा की फज्र तक पांच नमाज़ें अदा की जाती है। 9वीं जिलहिज्जा को सूरज निकलने के बाद से मैदान-ए-अरफात (पवित्र मैदान) जाते हैं और सूरज ढ़लने के बाद तक "वुकूफ-ए-अरफात" (यानी मैदान-ए-अरफात में ठहरना) करते हैं। जोहर व अस्र की नमाज़ यहीं अदा की जाती है। 9वीं जिलहिज्जा को अब मग़रिब का वक्त हो गया अब यहां से बगैर नमाज़-ए-मग़रिब पढे़ हाजी मैदान-ए-मुजदलफा (पवित्र स्थान) के लिए निकलते हैं। जिस वक्त मुजदलफा पहुंचते हैं यहां दो नमाज़ें (मग़रिब व इशा) की तरतीब के साथ एक साथ अदा करते हैं और यहां दुआ और गुनाहों की माफी में रात गुजारते हैं। यहां से हाजी कंकरियां चुनते हैं। रात गुजार कर 10वीं जिलहिज्जा का नमाज़-ए-फज्र पढ़कर सुबह सूरज निकलने के बाद मिना वापस आ जाते हैं और बड़े शैतान को कंकरियां मारते हैं फिर कुर्बानी कराकर सर मुंडाते हैं और अब एहराम से निकल जाते हैं। 

    उन्होंने बताया कि इसके बाद हज का दूसरा फ़र्ज़ "तवाफ-ए-जियारत" के लिए मक्का शरीफ रवाना हो जाते हैं और मक्का की पवित्र मस्जिद (मस्जिद-उल-हराम) में खाना-ए-काबा का तवाफ करते हैं। तवाफ के बाद सई यानि सफा पहाड़ी से मरवा पहाड़ी और फिर मरवा से सफा सात चक्कर पूरा करते हैं। एक चीज का ध्यान रखना चाहिए की सारे अरकान इसी तरतीब से होने चाहिए। बहुत सारे हाजी 10वीं तारीख को ही "तवाफ-ए-जियारत" कर लेते हैं। याद रहे कि "तवाफ-ए-जियारत" 10वीं की सुबह सादिक से लेकर 12वीं जिलहिज्जा के सूरज डूबने से पहले तक अदा करते हैं।

    उन्होंने आगे बताया कि 11वीं व 12वीं जिलहिज्जा को मिना के मैदान में सिर्फ तीन शैतानों को कंकरियां मारनी होती हैं। सबसे पहले छोटे को फिर मंझले को फिर बड़े शैतान को कंकरियां मारनी होती हैं। फिर हज की अदाएगी पूरी हो जाती है। आखिर में "तवाफ-ए-विदा" अदा किया जाता है। यह वाजिब और लाज़िम है। 

    प्रशिक्षण की शुरुआत कुरआन-ए-पाक की तिलावत से शहजाद अत्तारी ने की। नात-ए-पाक आदिल अत्तारी ने पेश की। अंत में दरूदो-सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो अमान की दुआ मांगी गई।

    प्रशिक्षण में मो. फरहान अत्तारी, इब्राहीम अत्तारी, अहमद अत्तारी, अब्दुल कलाम अत्तारी, शम्स आलम अत्तारी, रमज़ान अत्तारी, महताब अत्तारी, वसीउल्लाह अत्तारी सहित तमाम हज यात्री मौजूद रहे। 

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