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    शास्त्र का विस्तार करने वाले ही है ब्यास कथा का श्रवण मन करता है कान नही ;रमेश भाई शुक्ला



    गोला गोरखपुर। बांसगांवसंदेश। ।
    गोला तहसील क्षेत्र के ब्लॉक गगहा अंतर्गत ग्राम सभा कौवाडील में आयोजित संगीत मयी श्रीमद भागवत कथा के दूसरे दिन श्रद्धालु भक्त गणो को कथा का रसापान करते हुए अयोध्या धाम से आये अंतरराष्ट्रीय कथा वाचक पंडित रमेश भाई शुक्ला  ने कहा कि परमा देन हतं  श्रुतम। लापरवाही से सुनी कथा का फल नही प्राप्त होता है।शास्त्रों का विस्तार करने वाला ही ब्यास है। इनके  बचपन का नाम श्रीकृष्ण द्वयपायन था। परासर ऋषि इनके पिता व सत्यवती माता थी। सत्यवती के गर्भ से सत्रहवें  भगवान विष्णु  के अवतार के रूप में ब्यास अवतरित हुए। इनके समय मात्र एक ही वेद  था जिसे हम ऋग्वेद के नाम से जानते है।ब्यास जी ने  मन्त्रो को एकत्र करते हुए   यदुर्वेद सामवेद अथर्वेद की रचना किया।  वेद कबिस्तार करने के बाद इनकी उपाधि वेद ब्यास के रूप में हो गयी। गायत्री मंत्र वेदों का प्राण माना गया है। ब्यास जी ने चार वेदों के अतिरिक्त पांचवे वेद के रूप में  महाभारत   को दिया। वेदों के सिद्धांत को समझाने के लिए 17 पुराणों की रचना किये। इसके  अलावा वेदांत  ब्रह्म सूत्र  आदि की भी रचना ब्यास जी ने किया। संत महात्माओं का कहना है कि अगर कही अपने कार्य से  मन को संतुष्टि नही मिली तो समझिए कि कही कोई त्रुटि है। ब्यास जी ने अपने गुरु नारद जी का आवाहन किया। भगवान नारद जी आये और लिखे गए सभी ग्रन्थों को देख कर कहा कि  जो भी ग्रन्थ आपने लिखा है वह समाज के लिए है। लेकिन भगवान  के भक्ति से भरी कथा नही  लिखे है।
    भक्ति हीन सब गुन सुख ऐसे। नवन बिना सब व्यंजन जैसे। भागवत पुराण की रचना करने के लिए  नारद जी ने ब्यास जी को बताया। नारद जी ने कहा कि भागवत के विषय मे  नारायण ने पहली बार ब्रह्मा जी को सुनाया , ब्रह्मा जी ने  हमको और हम आपको सुनाते है।
    नारद जी द्वारा ब्यास जी को मात्र चार श्लोक बताया गया। ब्यास जी ने  गुरु द्वारा बताये गए चार श्लोकों को संगृहीत करते हुए अठारह हजार श्लोकों के साथ भागवत की रचना किया। भागवत कथा का श्रवण कर हर प्राणी  अपने जीवन मे  उतारे।कथा का मुख्य लक्ष्य है।
    आगे कथा ब्यास के कहा कि  भागवत कथा भक्ति की कथा है। इसे कोई भक्त ही संसार व समाज मे दे सकता है। भागवत कथा का वक्ता भक्त होना चाहिए। भगवान के सबसे बड़े भक्त शिव जी हैं। गीता में कृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि  भक्तों में शिव सबसे बड़े भक्त है। ब्यास जी काशी पहुचे और बाबा के दरबार मे अपनी धर्म पत्नी वर्तिका  के साथ  भगवान शिव को अपना पुत्र बनाने के लिए खड़े हो गए।  भगवान शिव वर्तिका के गर्भ मे आ गए और बारह बर्ष तक गर्भ में रहे। अंत मे गर्भ से आवाज आया कि  हम गर्भ से तभी बाहर आएंगे  जब काली कमरी वाले बंशी केसाथ दरवाजे पर खड़े होंगे। जिससे हमें पहला दर्शन उनका ही मिले। भगवान मुरलीधर बंशी केसाथ वर्तिका के सामने प्रकट हुए। गर्भ से शुकदेव बाहर आये और तत्काल जंगल की तरफ निकल दिए। 16 बर्ष की अवस्था पूरा कर पुनः वापस लौटे। भागवत कथा को पहली बार शुकदेव जी ने परीक्षित को श्रवण कराया ।और प्रथम श्रोता के रूपमे  परीक्षित महाराज रहे। पांडव के पूत अभिमन्यु और अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित हुए।उत्तर के गर्भ से पैदा हुए। भगवान जिसको बचाने के लिए स्वयं तैयार हो उसका कोई  कुछ बिगाड़ नही सकता है।
     भागवत कथा के श्रवण  से ही जीव को मोक्ष प्राप्त  होता है।और जीवन को सतगति मिलती  है।
    कथा के मुख्य आयोजक एवम  मुख्य यजमान दीनानाथ शर्मा और उनकी पत्नी सुमित्रा देवी  ने ब्यास पीठ की आरती किया। 
    इस अवसर पर  ग्राम प्रधान  प्रतिनिधि नागेंद्र नाथ शर्मा,दीपक शर्मा,अजय कुमार शर्मा,महेंद्रनाथ शर्मा,भानु प्रताप शर्मा हरी शंकर शर्मा,रवीश शर्मा,सुखलानंद शर्मा,शिवशंकर शर्मा, सहित भारी संख्या में लोग उपस्थित रहे।

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