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    मित्रता कृष्ण व सुदामा जैसी होनी चाहिए रमेश भाई शुक्ला




    गोला गोरखपुर ।बांसगांव संदेश। 
    गोला क्षेत्र के ग्राम कौवाडील में काली मंदिर पर चल रही संगीत मयीश्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिन कथा व्यास पीठ से अंतर्राष्ट्रीय कथा वाचक रमेश भाई शुक्ल ने श्रोताओं को श्रीकृष्ण _ सुदामा की कथा का रसपान कराते हुए कहा कि संसार में श्री कृष्ण _सुदामा जैसी मित्रता न देखने को मिलती है। न सुनने को मिलती है। उन्होंने कथा का विस्तार करते हुए कहा कि कृष्ण सुदामा दोनों बचपन में संदीपनी गुरू के पास एक साथ पढ़े थे। बाद में चल कर श्री द्वारिका के राजा बने ब्राह्मण सुदामा गरीब के गरीब ही रह गए। लेकिन गरीब सुदामा स्वाभिमानी व्यक्ति थे। वह घर घर भीख मांगकर अपना व परिवार का पेट पालन कर रहे थे।गरीब सुदामा एक दिन अपनी पत्नी से श्रीकृष्ण के साथ मित्रता की बात बताई। इस बात की जानकारी होने पर उनकी पत्नी बार बार श्री कृष्ण के पास जाने का आग्रह किया। अंत में सुदामा ने कहा कि यह बताओ कि यदि उनके यहां ले जाने के लिए कुछ तुम्हारे पास है । पत्नी ने पति के जाने की स्वीकृति पर बगल के घर तीन मुट्ठी चावल का टुकड़ा एक पोटली में बांध कर दे दिया। सुदमा जी पैदल द्वारिका चल तो दिए लेकिन मन में सोच रहे थे कि पता नहीं मित्र श्री कृष्ण हमको पहचानेगे कि नहीं। यही सोचते सोचते वह द्वारिका श्री कृष्ण के दरवाजे पर पहुंच गए। द्वारपाल ने अंदर जाकर ज्यों श्रीकृष्ण से केवल यही कहा कि दरवाजे पर एक ऐसा ब्राह्मण आया है जिसकी धोती फटी हैं। दुपट्टा में सीलट लगा हुआ है। उसको पैर में पनही तक पहने तक का सामर्थ्य नहीं है। अपना नाम सुदामा सुदामा बता रहा है। श्री कृष्ण सुदामा पांडे नाम सुनते ही वह नंगे पांव मित्र के पास दौड़ पड़े । उनकी पत्नियां अचंभित हो गई यह क्या हुआ ? मित्र श्री कृष्ण सुदामा को पकड़ कर घर के अंदर ले गए। परात में पानी मंगवाकर स्वयं उनके पैरों को धोने लगे। पैरों में फटी बिवाई व उसमें गड़े कांटों के समूह को निकालने लगे। मित्र सुदामा की दिन हीन दशा को देकर करुणा निधि के आखों से अश्रु की धारा बहने लगी। बाद में दो मुट्ठी चावल का टुकड़ा खासकर सुदामा को दो लोक दे दिया। उन्होंने इस प्रसंग को सुनाते हुए कहा कि मित्र की पचान सुख में नहीं दुःख में होता है। आज लोग धन व पद के अहंकार में गरीब मित्र की बात छोड़ दें । अपने माता_पिता को पहचानने से इंकार कर देते हैं। उन्होंने आगे कहा कि जीवन में यदि मान, पद या प्रतिष्ठा मिला जाए तो उसे ईश्वर की कृपा मानकर भलाई के कार्य करना चाहिए, लेकिन यदि उसका जीवन में किंचित मात्र भी अभिमान हुआ तो वह पाप का भागीदार बना देता है। जब जब भक्तों पर विपदा आती है तब भगवान उनके कल्याण के लिए सामने आते हैं। नारायण की भक्ति में ही परम आनंद मिलता है।भगवान प्रेम के भूखे हैं। वासनाओं का त्याग करके ही प्रभु से मिलन संभव है। उन्होंने श्रद्धालुओं से कहा कि वासना को वस्त्र की भांति त्याग देना चाहिए। श्रीमद् भागवत कथा का जो श्रवण करता है उनपर भगवान कि कृपा हमेशा बनी रहती है। कथा का शुभारंभ आयोजक दीनानाथ शर्मा पत्नी सुमित्रा देवी, ग्राम प्रधान नागेन्द्र नाथ शर्मा के व्यास पीठ की उतारने के बाद हुआ।इस अवसर पर पूर्व प्रधान देवी प्रसाद शुक्ल, हरि नाथ तिवारी,उमेश चंद्र मिश्रा, , महेंद्र भट्ट, सुखिलानंद शर्मा, कृष्णकांत उर्फ लड्डू,डॉ अवनीश भट्ट, संतोष बबलू शर्मा, ऋतिक नेता, आदि श्रद्धालुओं ने भागवत कथा के रस में डुबकी लगाई I

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