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    तीसरा रोज़ा : अल्लाह को महबूब है माह-ए-रमज़ान हज़रत फातिमा ज़हरा को शिद्दत से किया गया याद

    तीसरा रोज़ा : अल्लाह को महबूब है माह-ए-रमज़ान


    गोरखपुर। रोज़ेदार बंदों ने गुरुवार का दिन अल्लाह की रज़ा में गुजारा। भूख प्यास के बीच रोज़ेदार अल्लाह का शुक्र अदा कर रहे हैं। खुशनसीब मुसलमान एक साथ तीन फ़र्ज़ अदा कर रहे हैं, नमाज़ भी पढ़ रहे हैं, रोज़ा भी रख रहे हैं और जो मालिके निसाब हैं वह ज़कात भी अदा कर रहे हैं। मस्जिदों व दरगाहों पर सामूहिक रूप से इफ्तार हो रही है। माह-ए-रमज़ान का तीसरा रोज़ा भी अल्लाह की इबादत में बीता। चारों तरफ रमज़ान का नूर छाया हुआ है। अल्लाह के बंदे दिन में रोज़ा रखकर व रात में तरावीह की नमाज़ अदा कर अल्लाह को राज़ी करने में लगे हुए हैं।  क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत जारी है। नफ्ल नमाज़ें सलातुल तस्बीह, चाश्त, तहज्जुद, इशराक, सलातुल अव्वाबीन आदि पढ़ी जा रही हैं। नबी व आले नबी पर दरूदो-सलाम का नज़राना पेश किया जा रहा है। सुबह सहरी के लिए मस्जिद से रोज़ेदारों को जगाने के लिए सदाएं दी जा रही हैं। इफ्तार के वक्त मस्जिदों से रोज़ा खोलने का डंका बज रहा है। मस्जिदों की सफें नौजवानों, बुजुर्गों व बच्चों से भरी नज़र आ रही हैं। घरों में महिलाएं इबादत के साथ किचन व बाज़ार से खरीदारी की जिम्मेदारियां उठा रही हैं।बाजारों में खूब चहल पहल है। हर तरफ रमज़ान का फैज़ान जारी है।

    हज़रत फातिमा ज़हरा को शिद्दत से किया गया याद

    मस्जिदों में चल रहे दर्स में रमज़ान के फजाइल के साथ हज़रत सैयदा फातिमा ज़हरा रदियल्लाहु अन्हा की ज़िंदगी पर रोशनी डाली गई। फातिहा ख्वानी हुई। मरकजी मदीना जामा मस्जिद रेती चौक में मुफ्ती मेराज अहमद कादरी कादरी व मकतब इस्लामियात तुर्कमानपुर में हाफिज सैफ अली इस्माईली ने बताया कि पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बेटी, हज़रत अली की बीवी हज़रत सैयदा फातिमा ज़हरा रदियल्लाहु अन्हा का विसाल (निधन) 3 रमज़ानुल मुबारक को हुआ था। आपकी ज़िंदगी हम सभी खासकर औरतों के लिए ऐसी नज़ीर है, जिस पर अमल करते हुए अपनी ज़िंदगी को खूबसूरत बनाया जा सकता है। हज़रत फातिमा ने अपनी पूरी ज़िंदगी अल्लाह की इबादत में गुजार दी। वालिद, शौहर, बेटों के साथ उनका जो सुलूक रहा, वह आज भी एक नमूना-ए-हयात बना हुआ है। आपने जिस तरह ज़िंदगी गुजारी, बच्चों की परवरिश, पड़ोसियों का ख्याल रखा वह एक मिसाल है।

    सदका-ए-फित्र एक आदमी की तरफ से 60 रुपया है : मुफ्ती अजहर 

    नायब काजी मुफ्ती मो. अजहर शम्सी ने बताया कि माह-ए-रमज़ान में सदका-ए-फित्र निकाला जाता है। सदका-ए-फित्र हर मालिके निसाब पर अपनी और अपनी नाबालिग औलाद की जानिब से अदा करना ईद के दिन वाजिब होता है लेकिन ज़कात की तरह इसमें माल पर साल गुजरना जरुरी नहीं है, बल्कि ईद के दिन फ़ज्र तुलू होने से पहले भी अगर निसाब भर माल का मालिक हो गया तो उस पर सदका-ए-फित्र वाजिब है। जो गरीबों, यतीमों व बेसहारा मुसलमानों को दिया जाता है। इसको निकालने में जल्दी करें ताकि ग़रीब भी खुशियों में शामिल हो सकें। जितनी जल्दी आप सदका-ए-फित्र निकालेंगे उतने जल्दी ही वह ग़रीबों के लिए फायदामंद होगा। गोरखपुर के मुसलमानों के लिए गेहूं की कीमत के ऐतबार से सदका-ए-फित्र की मिकदार एक आदमी की तरफ से 60 रुपया है, आप अपनी ताकत और तौफीक के मुताबिक जौ, खजूर या मुनक्का की कीमत भी 4 किलो 94 ग्राम का लिहाज़ करते हुए सदका-ए-फित्र निकाल सकते हैं। 

    रोज़े से गफलत दूर होती है : हाफिज आफताब 

    शाही मस्जिद तकिया कवलदह के इमाम हाफिज आफताब आलम ने बताया कि रोज़े से गफलत दूर होती है इसलिए बंदा अल्लाह का करीबी हो जाता है। हदीस शरीफ में है कि रमज़ान और कुरआन रोज़ेदार की शफाअत करेंगे। अल्लाह तआला ने फरमाया कि बंदा रोज़ा मेरे लिए रखता है और उसकी जजा मैं दूंगा। बंदा अपनी ख्वाहिश और खाने को मेरी वजह से तर्क करता है। रोज़ेदार के लिए दो खुशियां है एक इफ्तार के वक्त और एक अल्लाह से मिलने के वक्त। रोज़ा रखने से बंदा अल्लाह का करीबी बन जाता है। सहरी करना पैगंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नत है लिहाजा सहरी जरूर करें।

    माह-ए-रमज़ान का पहला जुमा आज 

    जुमा को हफ्ते की ईद कहते हैं। माह-ए-रमज़ान में पड़ने वाले पहले जुमा के लिए मस्जिदों में तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। दो सौ से अधिक मस्जिदों में जुमा का खुत्बा पढ़ा जाएगा और जुमा की नमाज़ अदा कर मुल्क में अमनो शांति की दुआ मांगी जाएगी। महिलाएं घरों में इबादत कर दुआ मांगेंगीं।

    इंजेक्शन लगवाने से रोज़ा नहीं टूटता :  उलमा किराम 

    उलमा-ए-अहले सुन्नत द्वारा जारी रमज़ान हेल्पलाइन नंबरों पर गुरुवार को सवाल-जवाब का सिलसिला जारी रहा। लोगों ने नमाज़, रोज़ा, जकात, फित्रा आदि के बारे में सवाल किए। उलमा किराम ने क़ुरआन व हदीस की रोशनी में जवाब दिया। 

    1. रोज़े की हालत में अगर खांसते समय मुंह से खून या बलगम आ जाए तो क्या हुक्म है? (अब्दुल, अलीनगर)
    जवाब : अगर खून हल्क से नीचे नहीं उतरा तो रोज़ा नहीं टूटेगा। (मुफ्ती अख़्तर हुसैन)

    2. सवाल : क्या इंजेक्शन लगवाने से रोज़ा टूट जाता है? (नदीम अहमद, तकिया कवलदह)
    जवाब : नहीं। इंजेक्शन गोश्त में लगवाया जाए या नस में इससे रोज़ा नहीं टूटता। (मौलाना जहांगीर)

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