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    अभिव्यक्ति की तीसरी गोष्ठी सम्पन्न




    गोरखपुर । बासगांव संदेश । अभिव्यक्ति' साहित्यिक- सांस्कृतिक संस्था की तीसरी गोष्ठी संस्था के मुख्यालय 90, प्रतापनगर टीचर्स कालोनी चिलमापुर रुस्तमपुर गोरखपुर में नियत तिथि पर सकुशल सम्पन्न हुई । 
    कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि नर्वदेश्वर सिंह मास्टर साहब ने और प्रत्येक कविता पर उत्कृष्ट टिप्पणियों के साथ संचालन शशिबिन्दु नारायण मिश्र ने किया। वाग्देवी के चित्र पर दीप प्रज्ज्वलन के पश्चात् कवि बृजेश राय ने मधुर स्वर में स्वरचित सरस्वती वंदना पढ़ी। उसके बाद पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार वयोवृद्ध कवि वागीश्वरी मिश्र 'वागीश' की भोजपुरी रचनाओं पर भाषाविद एवं समीक्षक प्रोफ़ेसर रामदरश राय द्वारा भोजपुरी में लिखित समीक्षा का बृजेश राय द्वारा कुशलतापूर्वक वाचन किया गया। प्रोफ़ेसर राय ने वागीश्वरी मिश्र 'वागीश' के बारे में लिखा कि -"वागीश जी नया कवि नाहीं बाटें। अनुभव सिद्ध आ वाणीऋद्ध प्रौढ़ सयान कवि हवें। ............. वाकई, वागीश्वरी मिश्र 'वागीश' में बेबाक काव्य हुनर बाs। भोजपुरी भाषा आ अभिव्यक्ति विन्यास के दुर्लभ कला-विवेक भी बाs।" 
    उपस्थित सभी रचनाकारों ने अद्भुत और स्तरीय रचनाओं का पाठ किया। 
     समीक्षा पाठ के बाद गोरखपुर में काव्य क्षेत्र की एकदम नयी पौध वरांगदेव मिश्र ने कविता पढ़ी -
    "न खाने को खाना, न खेलने को खिलौना।
    न पढ़ने को किताब,न रहने का ठिकाना।
    न दिल में उम्मीद,न दिमाग में तकलीफ़।
    फिर भी जी रहा है गरीब।"
    नये तेवर के कवि यशस्वी यशवन्त ने -"हिम्मत के गीत सुना के, आँख में तोहरा पानी बाs।"  गीत सुनाकर काव्यगोष्ठी की अच्छी शुरुआत की। 
    गीतकार रामसमुझ 'साँवरा' ने भारतीय बेटी के आदर्श पर गीत पढ़ा -"बबुनी राहे चलिहs नजरिया गड़ाइ के, ओढ़नी बचाइ के नाs। तू हऊ भारत के बेटी।"
    भागीरथी सांस्कृतिक मंच के सचिव बृजेश राय ने प्रेम की पवित्रता को परिभाषित करती हुई उच्च कोटि की कविता पढ़ी -"प्रेम बायें हाथ का खेल नहीं, दायें हाथ का खेल है, प्रेम करने वाले लोग खपा देते हैं ताउम्र, लेकिन साँस तक नहीं लेते।"
    अनुभवी एवं वरिष्ठ कवि जगदीश खेतान ने कविता पढ़ी -"काश् मेरी भी साली होती,गोरी या काली होती।" इस कविता में भ्रूणहत्या रोकने का उत्तम संदेश अच्छा लगा। खेतान ने दूसरी व्यंग्य रचना भी पढ़ी -"खूब लगवले चूना बाs।"
    कवयित्री डॉ कनकलता ने शान्त रस में बहुत उच्च भावभूमि का गीत पढ़ा--"कैसे करूँ मन का श्रृंगार,....... मन का है अपना रंगमंच, रूप धरे हजार।" कनक जैसी गीत की सहज और आकर्षक प्रस्तुति कम ही सुनने को मिलती है, इस बात को उपस्थित सभी रचनाकारों ने स्वीकार किया।
    वरिष्ठ छांदस चेतना के कवि ओमप्रकाश पाण्डेय 'आचार्य जी' ने सवैया छंद में स्वरचित लंकादहन प्रसंग की कविता पढ़ी -"जो आखिरी छोर अधूरा है, नहीं कह सकता पूरा है।"
    'विश्व शांति मिशन' संस्था के प्रस्तोता गीतकार-ग़ज़लकार अरुण ब्रह्मचारी ने शानदार समसामयिक ग़ज़ल पढ़ी - ग़ज़ल के मतले का शेर है -
    "एक लफ्ज़ मुहब्बत की, बस इतनी कहानी है।
    पत्थर का जमाना है, शीशे की जवानी है।"
    अभिव्यक्ति के अध्यक्ष गीतकार जयप्रकाश नायक ने व्यवस्था का यथार्थ चित्रण करते हुए बहुत सुंदर गीत पढ़ा -- "कत्ल में हाथ तो हमशक्ल का, इजलास में हम लाये गये।" 
    वर्तमान ग़ज़ल में प्रतिष्ठित नाम सृजन गोरखपुरी ने जीवन की वास्तविकता का चित्रण करते हुए ग़ज़ल पढ़ी -
    "लोहे  के  सौ  चने  चबाने  पड़ते हैं।
    फिर बच्चों के मुँह में दाने पड़ते हैं।"
    खुशबू को क़ायम रखना ही रखना है,
    काँटों  से  सम्बन्ध निभाने  पड़ते हैं।"
    भोजपुरी संगम के संयोजक कुमार अभिनीत ने घर में बेटी पैदा होने के बाद पुरुष मानसिकता पर प्रश्न चिह्न लगाते हुए बेटी शीर्षक पर उत्कृष्ट भोजपुरी गीत पढ़ा -
    "बेटी अस धन मिले सगरी घरन में, खिल उठे गाँव जवार।
    अस धन पाई के घर मोर महके, चहकेला घर परिवार।"
    वागीश्वरी मिश्र 'वागीश' ने जीवनानुभव को व्यक्त करते हुए स्नेहिल मिठास में भोजपुरी गीत पढ़ा --
    "बहका हूँ बार-बार मैं,सम्हला हूँ बार-बार।
    फिर भी तेरी गली से,मैं गुज़रा हूँ बार-बार।।"
    मुख्य अतिथि के रूप में पधारे कवि डॉ काशी नाथ त्रिपाठी ने वर्तमान समाज में किसी सज्जन, योग्य और स्वाभिमानी व्यक्ति की स्थिति का बहुत ही सलीके से चित्रण करते हुए कविता पढ़ी-
    "कितनी विवशता होती होगी सखे ! जब उन्नत रहने की अभ्यस्त किसी ग्रीवा को धीरे-धीरे क्षितिज की ओर झुकना पड़ता होगा।" 
    अध्यक्षीय उद्बोधन के साथ काव्य पाठ किया नर्वदेश्वर सिंह मास्टर साहब ने, आपने महाराणा प्रताप के राष्ट्रहित में शौर्य और बलिदान पर बहुत ही सुन्दर कविता पढ़ी। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में मास्टर साहब ने कहा कि "अभिव्यक्ति को नित उछाह के साथ प्रगति करते हुए देखकर मन गदगद है, पिछली गोष्ठियाँ भी बहुत शानदार रहीं, पर यह गोष्ठी अप्रत्याशित रूप से उन गोष्ठियों से अधिक सफल है।" अन्त में संस्थाध्यक्ष डॉ जयप्रकाश नायक ने सभी के प्रति आभार ज्ञापन किया और 04 अगस्त 2024 रविवार को होने वाली आगामी गोष्ठी में सभी की उपस्थिति के लिए उपस्थित रचनाकारों से निवेदन किया।

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