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    आवरण की अपेक्षा आचरण में सुधार लाओ राघव ऋषिजी



    गोला गोरखपु बांसगांव संदेश।
    रामकथा सीखने सिखाने की कथा है प्रभु श्री राम ने अपने सम्पूर्ण जीवन में गुरुदेव,साधु, संतों के च
    रणों की कृपा से उनके चरणों का प्रसाद पाया है हमें भी आचरण अपनाने की आवश्यकता है आवरण से दूसरों को प्रभावित किया जा सकता है किन्तु स्वयं को संतुष्ट नहीं कर सकते। हमें भाव में जीने की आवश्यकता है न कि प्रभाव में सन्त, गुरु, देव के चरण के साथ आचरण को ग्रहण करने से ही जीवन सफल बनाया जा सकता है। उक्त बाते संगीत मयी श्री रामकथा के छठवे दिन कुशलदेइया ग्राम सभा स्थित पी , एच, इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल परिसर में कथा स्थल में कथा का रसपान कराते हुए
    पूज्य श्री राघव ऋषि जी ने कही ।
    आगे कथा के क्रम को बढ़ाते हुए पूज्य श्री ने कहा कि प्रभु को पाने के बाद किसी भक्त की अन्य और कोई कामना नहीं रह जाती। वनवास काल में प्रभु अनेकों तीर्थों का दर्शन करते हुए उन तीर्थों की महिमा का गुणगान करते हैं। जो स्वयं तीर्थ हैं आज उन संतों का भाग्य की उनकी भक्ति को धन्य करने प्रभु स्वयं पधारे हैं।
    आगे बढ़ते हुए भगवान बाल्मीकि आश्रम पधारे भक्त और भगवान एक दूसरे को को अपलक देख अघा नहीं रहे। संत मिलन से प्रभु परम प्रसन्न हुए। जिस प्रकृति को स्वयं प्रभु ने बनाया है आज उसी की महिमा का बखान कर सम्पूर्ण विश्व को सिखाया है कि प्रकृति के साथ जीवन सजा लेना चाहिए। जो सम्पूर्ण जगत को धारण करने वाले हैं आज वही पूछ रहे हैं कि मैं कहां रहूं। वो कहां नहीं हैं अर्थात सम्पूर्ण स्थिति अवस्था में एक मात्र वही विद्यमान हैं। ऐसी सरलता सकता हमारे प्रभु श्री राम में ही हैं। प्रभु संतों का आशिर्वाद लेकर आगे बढ़ते हुए चित्रकूट में निवास करते हैं जिसकी महिमा अपरम्पार है।
    प्रभु मिल जाएंगे मोहक मार्मिक भजन सुना सौरभ जी ने भक्तों को भाव विभोर किया व झूमने पर विवश कियाअपार जन समूह भक्ति में सराबोर हुए।
    कथा आरती में कथा के मुख्य यजमान श्री मनोज कुमार उमर वैश्य समस्त पारिवारिक भक्त श्रोताओं ने भव्य आरती सम्पन्न कर पुण्य लाभ प्राप्त किया।

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