धान में लगने वाले रोगों से करें बचाव
देवरिया । जिलाधिकारी श्रीमती दिव्या मित्तल के निर्देश पर जिला कृषि रक्षा अधिकारी इरम ने बताया है कि इस समय खरीफ की मुख्य फसल धान बढ़वार की अवस्था में है। विगत कुछ दिनों से मौसम में हो रहे बदलाव-बारिश तथा तापमान 28 डिग्री से0- 34 डिग्री से० तक एवं वातावरण में नमी (सापेक्षिक आईता) के कारण धान मे रोग लग सकते है।
झुलसा रोग (बैक्टीरियल ब्लाईट /स्ट्रक) नहरी या सिंचित खेतों मे अधिक लगता है जिसमे पत्तिया नोक की तरफ से अंन्दर की तरफ पीली पड़ लहरदार होकर सूखने लगती है तथा बाद में पुआल जैसे दिखने लगती है। बैक्टीरियल स्ट्रीक मे सुबह के समय पत्तियों खून की तरह लाल दिखायी देती है। इसके नियन्त्रण हेतु 15 ग्राम स्ट्रप्टोसाइक्लिन या वेलिडामाइसिन एन्टीबायोटिक तथा 500 कापर आक्सीक्लोराईड 500 लीटर पानी मे मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव करें। शीथ ब्लाइट व शीथ राट रोग में जिन क्षेत्रो मे जल जमाव है एवं साथ ही खेत मे यूरिया (नाइट्रोजन) अधिक प्रयुक्त है वहाँ धान की फसल इस रोग से प्रभावित हो सकती है। शीथ ब्लाइट रोग में पत्तियों पर अनियमित आकार के धब्बे बनते है जिनका किनारा गहरा भूरा तथा बीच का भाग हल्के रंग का होता है बाद में धब्बे एकाकार हो जाते है, पत्तियों सूख जाती है। शीथ राट में उक्त के अलावा पूरा शीथ प्रभावित होकर सडने लगता है। इसके नियन्त्रण हेतु कार्बेन्डाजिम 50 प्रति० डब्लू०पी० की 500 ग्राम / हेक्टेयर या प्रोपीकोनाजील 25% EC की 500 मिली० प्रति हे० या एजाक्सीस्ट्रोबिन 11 प्रति0+-टेबूकोनाजोल 180.3 प्रति० एस०सी० मे से किसी एक का प्रयोग करें व 10 से 15 दिन बाद पुनः रसायन बदल कर छिडकाव करें।
झोंका रोग धान का यह अत्यन्त विनाशकारी रोग है जिससे पत्तियों व उनके निचले भागों पर आंख के आकार के छोटे धब्बे बनते हे जो बाद मे बढ़कर नाव की तरह हो जातें है। सर्वप्रथम पत्तियों पर तत्पश्चात पर्णच्छद, गाठो आदि पर दिखते है। यह फंफूदजनित रोग पौधों की पत्तियों, गाठों एवं बालियों के आधार को भी प्रभावित करता है। इसमे धब्बो के बीच का भाग राख के रंग का तथा किनारें कत्थई रंग के घेरे की तरह होते है जो बढकर कई से०मी० बडे हो जाते है। समय पर नियन्त्रण न होने पर शत-प्रतिशत फसल की हानि होती है। इसके नियन्त्रण हेतु कार्बेन्डाजिम 50 प्रति० डब्लू०पी० 500 ग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 2-3 छिडकाव 10 दिन के अन्तराल पर करें। धान मे उक्त रोग अधिक नमी/जल-जमाव तथा मृदा मे नाइट्रोजन की अधिकता से होते है। कृषक जल-जमाव न होने दे, यूरिया का संतुलित मात्रा मे ही प्रयोग करें। मेडों की सफाई करें जिससे आगे चलकर गन्धी आदि कीटों का नियन्त्रण किया जा सकें।
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